Somvar Vrat Katha in Hindi: सोमवार व्रत का महत्व भगवान शंकर को समर्पित होता है। सोमवार के दिन भक्त भोलेनाथ को खुश करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत रखते हैं ताकि शिव भगवान की कृपा प्राप्त हो सके। बाबा भोलेनाथ के आशीर्वाद के लिए यदि आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूरा करें।
सोमवार के व्रत को मानते हैं कि इसे करने से भगवान शिव अपने भक्तो की इच्छाएँ जल्दी पूरी करते हैं। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। यही कारण है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने का महत्व और भी बढ़ जाता है। सोमवार को व्रत रखने वाले लोगों को सोमवार की व्रत कथा पढ़ना बहुत जरूरी है। क्योंकि इसके बिना व्रत पूरा नहीं माना जाता है। सोमवार व्रत की कथा जानें।
महादेव बहुत भोले होते हैं, इसलिए उनका दूसरा नाम भोलेनाथ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कोई विशेष पूजन की आवश्यकता नहीं होती। यह कहा जाता है कि वह भोले हैं और भक्ति के मन से की गई क्षणिक भक्ति से खुश हैं।
Somvar Vrat Katha कैसे करे? – सोमवार व्रत की विधि
सोमवार व्रत की विधि: सोमवार के व्रत में व्रतियों को सुबह नहा धोकर भोलेनाथ की पूजा करने का निश्चय करना चाहिए। फिर घर के मंदिर के बाहर चौकी बनाकर शिव और मां पार्वती की मूर्ति या चित्र को स्थापित करना चाहिए। चंदन से भगवान शिव और माता पार्वती को तिलक लगाने के बाद उन्हें रोली, अक्षत और सुपारी चढ़ाएं। फल, फूल आदि से उनको भोग लगाकर आरती करें। इसके बाद आपको शिवलिंग को जलाभिषेक करना चाहिए। कथानुसार, भगवान शिव को पंचामृत और मिश्री का भोग लगाया जाता था। आप मालपुए बनाकर शिव भगवान को भोग लगा सकते हैं क्योंकि भगवान शिव को मालपुए बहुत अच्छा लगता है।
शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए। इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए। साधारण रूप से सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है, मतलब शाम तक रखा जाता है। सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत, इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है।
सोमवार व्रत कथा कैसे करते हैं?
- सबसे पहले, सोमवार को शिवलिंग पर जल अर्पित करें। यदि शिवलिंग नहीं हो, तो घर में कोई छोटी पूजा स्थली बनाएं और वहां जल अर्पित करें।
- फिर शिवजी को बेल पत्र, धातुरा, चन्दन, और गंगाजल से पूजें। मन में भगवान शिव की भक्ति और श्रद्धा से आराधना करें।
- व्रत कथा को पढ़ें। यह कथा शिवलिंग के आगे बैठकर, मंदिर में, या गृह मंदिर में पढ़ी जा सकती है।
- कथा का पाठ पूरा होने के बाद, भगवान शिव को अर्पण करें और उनकी कृपा का आशीर्वाद मांगें।
- व्रत के दिन विशेष रूप से सात्विक भोजन करें और अन्य उपवास के नियमों का भी पालन करें।
- सोमवार के व्रत को समाप्त करने के बाद, शिवजी की आराधना को समाप्त करें और उनकी कृपा की कामना करें।
पूजा को ध्यान से और भक्ति भाव से करने से सोमवार के व्रत कथा का अच्छा अनुभव होता है।
सोमवार की व्रत कथा: Somvar Vrat Katha
एक बार की बात है, एक नगर में एक साहूकार निवास करता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी, परन्तु उसे कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण वह बहुत दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा से शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा किया करता था। उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।
माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना। जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना।
दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची।साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात ठीक नहीं लगी।
Somvar Vrat Katha पूरा पढ़े
उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं। जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया, जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ।
शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें। जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे भगवान जी ने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है। लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।
माता पार्वती के प्रार्थना से भगवान शिव ने उस लड़के को जीवनदान दिया। भगवान की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा पूरी करने के बाद, वह लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर निकला। उन दोनों ने उसी नगर में जहां उसका विवाह हुआ था यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और उसकी खातिरदारी किया, और अपनी पुत्री और दामाद को विदा किया।
उसी समय साहूकार और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने संकल्प बनाया था कि अगर उन्हें बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे, परंतु बेटे के जीवनकल्याण के समाचार सुनकर वे अत्यन्त खुश हुए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा – “हे व्यापारी, मैंने तुम्हारे सोमवार के व्रत और कथा सुनने का प्रसन्नता प्राप्त कर तुम्हारे पुत्र को दीर्घायु प्रदान किया है। जैसे ही कोई सोमवार व्रत करता है और कथा सुनता या पढ़ता है, उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।”
108 Names of Lord Shiva – शिव जी के 108 नाम का जाप करे
Somvar Vrat Katha और भोलेनाथ के 108 नामों का जाप करने से भगवान भोलेनाथ का प्रेम और आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिससे साधक अपनी इच्छा को पूरा करके जीवन में सफलता, सुख और शांति पाता है। रुद्राक्ष की माला से भगवान शिव के प्रिय सोमवार को उनके 108 नाम का जप करने से सुख, अपार धन, संपदा, अखंड सौभाग्य और प्रसन्नता मिलती है।
- शिव- ॐ शिवाय नमःOm Shivaya Namah
- महेश्वर- ॐ महेश्वराय नमःOm Maheshwaraya Namah
- शंभवे- ॐ शंभवे नमःOm Shambhave Namah
- पिनाकिने- ॐ पिनाकिने नमःOm Pinakine Namah
- शशिशेखर- ॐ शशिशेखराय नमःOm Shashishekharaya Namah.
- वामदेवाय- ॐ वामदेवाय नमःOm Vamadevaya Namah
- विरूपाक्ष- ॐ विरूपाक्षाय नमःOm Virupakshaya Namah
- कपर्दी- ॐ कपर्दिने नमःOm Kapardine Namah
- नीललोहित- ॐ नीललोहिताय नमःOm Nilalohitaya Namah
- शंकर- ॐ शंकराय नमःOm Shankaraya Namah
- शूलपाणी- ॐ शूलपाणये नमःOm Shulapanaye Namah
- खटवांगी- ॐ खट्वांगिने नमःOm Khatvangine Namah
- विष्णुवल्लभ- ॐ विष्णुवल्लभाय नमःOm Vishnuvallabhaya Namah
- शिपिविष्ट- ॐ शिपिविष्टाय नमःOm Shipivishtaya Namah
- अंबिकानाथ- ॐ अंबिकानाथाय नमःOm Ambikanathaya Namah
- श्रीकण्ठ- ॐ श्रीकण्ठाय नमःOm Shrikanthaya Namah
- भक्तवत्सल- ॐ भक्तवत्सलाय नमःOm Bhaktavatsalaya Namah
- भव- ॐ भवाय नमःOm Bhavaya Namah
- शर्व- ॐ शर्वाय नमःOm Sharvaya Namah
- त्रिलोकेश-ॐ त्रिलोकेशाय नमःOm Trilokeshaya Namah
- शितिकण्ठ- ॐ शितिकण्ठाय नमःOm Shitikanthaya Namah
- शिवाप्रिय- ॐ शिवा प्रियाय नमःOm Shiva Priyaya Namah
- उग्र- ॐ उग्राय नमःOm Ugraya Namah
- कपाली- ॐ कपालिने नमःOm Kapaline Namah
- कामारी- ॐ कामारये नमःOm Kamaraye Namah
- अंधकारसुर सूदन- ॐ अन्धकासुरसूदनाय नमःOm Andhakasurasudanaya Namah
- गंगाधर- ॐ गंगाधराय नमःOm Gangadharaya Namah
- ललाटाक्ष- ॐ ललाटाक्षाय नमःOm Lalatakshaya Namah
- कालकाल- ॐ कालकालाय नमःOm Kalakalaya Namah
- कृपानिधि- ॐ कृपानिधये नमःOm Kripanidhaye Namah
- भीम- ॐ भीमाय नमःOm Bhimaya Namah
- परशुहस्त-ॐ परशुहस्ताय नमःOm Parashuhastaya Namah
- मृगपाणी- ॐ मृगपाणये नमःOm Mrigapanaye Namah
- जटाधर- ॐ जटाधराय नमःOm Jatadharaya Namah
- कैलाशवासी- ॐ कैलाशवासिने नमःOm Kailashavasine Namah
- कवची- ॐ कवचिने नमःOm Kawachine Namah
- कठोर- ॐ कठोराय नमःOm Kathoraya Namah
- त्रिपुरान्तक- ॐ त्रिपुरान्तकाय नमःOm Tripurantakaya Namah
- वृषांक- ॐ वृषांकाय नमःOm Vrishankaya Namah
- वृषभारूढ़- ॐ वृषभारूढाय नमःOm Vrishabharudhaya Namah
- भस्मोद्धूलितविग्रह- ॐ भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमःOm Bhasmodhulitavigrahaya Namah
- सामप्रिय- ॐ सामप्रियाय नमःOm Samapriyaya Namah
- स्वरमयी- ॐ स्वरमयाय नमःOm Swaramayaya Namah
- त्रयीमूर्ति- ॐ त्रयीमूर्तये नमःOm Trayimurtaye Namah
- अनीश्वर- ॐ अनीश्वराय नमःOm Anishwaraya Namah
- सर्वज्ञ- ॐ सर्वज्ञाय नमःOm Sarvajnaya Namah
- परमात्मा- ॐ परमात्मने नमःOm Paramatmane Namah
- सोमसूर्याग्निलोचन- ॐ सोमसूर्याग्निलोचनाय नमःOm Somasuryagnilochanaya Namah
- हवि- ॐ हविषे नमःOm Havishe Namah
- यज्ञमय- ॐ यज्ञमयाय नमःOm Yajnamayaya Namah
- सोम- ॐ सोमाय नमःOm Somaya Namah
- पंचवक्त्र- ॐ पंचवक्त्राय नमःOm Panchavaktraya Namah
- सदाशिव- ॐ सदाशिवाय नमःOm Sadashivaya Namah
- विश्वेश्वर- ॐ विश्वेश्वराय नमःOm Vishveshwaraya Namah
- वीरभद्र- ॐ वीरभद्राय नमःOm Virabhadraya Namah
- गणनाथ- ॐ गणनाथाय नमःOm Gananathaya Namah
- प्रजापति- ॐ प्रजापतये नमःOm Prajapataye Namah
- हिरण्यरेता- ॐ हिरण्यरेतसे नमःOm Hiranyaretase Namah
- दुर्धर्ष- ॐ दुर्धर्षाय नमःOm Durdharshaya Namah
- गिरीश- ॐ गिरीशाय नमःOm Girishaya Namah
- गिरिश- ॐ गिरिशाय नमःOm Girishaya Namah
- अनघ- ॐ अनघाय नमःOm Anaghaya Namah
- भुजंगभूषण- ॐ भुजंगभूषणाय नमःOm Bujangabhushanaya Namah
- भर्ग- ॐ भर्गाय नमःOm Bhargaya Namah
- गिरिधन्वा- ॐ गिरिधन्वने नमःOm Giridhanvane Namah
- गिरिप्रिय- ॐ गिरिप्रियाय नमःOm Giripriyaya Namah
- कृत्तिवासा- ॐ कृत्तिवाससे नमःOm krittivasase Namah
- पुराराति- ॐ पुरारातये नमःOm Purarataye Namah
- भगवान्ॐ- ॐ भगवते नमःOm Bhagawate Namah
- प्रमथाधिप- ॐ प्रमथाधिपाय नमःOm Pramathadhipaya Namah
- मृत्युंजय- ॐ मृत्युंजयाय नमःOm Mrityunjayaya Namah
- सूक्ष्मतनु- ॐ सूक्ष्मतनवे नमःOm Sukshmatanave Namah
- जगद्व्यापी- ॐ जगद्व्यापिने नमःOm Jagadvyapine Namah
- जगद्गुरू- ॐ जगद्गुरुवे नमःOm Jagadguruve Namah
- व्योमकेश- ॐ व्योमकेशाय नमःOm Vyomakeshaya Namah
- महासेनजनक- ॐ महासेनजनकाय नमःOm Mahasenajanakaya Namah
- चारुविक्रम- ॐ चारुविक्रमाय नमःOm Charuvikramaya Namah
- रुद्र- ॐ रुद्राय नमःOm Rudraya Namah
- भूतपति- ॐ भूतपतये नमःOm Bhutapataye Namah
- स्थाणु- ॐ स्थाणवे नमःOm Sthanave Namah
- अहिर्बुध्न्य- ॐ अहिर्बुध्न्याय नमःOm Ahirbudhnyaya Namah
- दिगम्बर- ॐ दिगंबराय नमःOm Digambaraya Namah
- अष्टमूर्ति- ॐ अष्टमूर्तये नमःOm Ashtamurtaye Namah
- अनेकात्मा- ॐ अनेकात्मने नमःOm Anekatmane Namah
- सात्विक- ॐ सात्विकाय नमःOm Satvikaya Namah
- शुद्धविग्रह- ॐ शुद्धविग्रहाय नमःOm Shuddhavigrahaya Namah.
- शाश्वत- ॐ शाश्वताय नमःOm Shashvataya Namah
- खण्डपरशु- ॐ खण्डपरशवे नमःOm Khandaparashave Namah
- अज- ॐ अजाय नमःOm Ajaya Namah
- पाशविमोचन- ॐ पाशविमोचकाय नमःOm Pashavimochakaya Namah
- मृड- ॐ मृडाय नमःOm Mridaya Namah
- पशुपति- ॐ पशुपतये नमःOm Pashupataye Namah
- देव- ॐ देवाय नमःOm Devaya Namah
- महादेव- ॐ महादेवाय नमःOm Mahadevaya Namah
- अव्यय- ॐ अव्ययाय नमःOm Avyayaya Namah
- हरि- ॐ हरये नमःOm Haraye Namah
- भगनेत्रभिद्ॐ भगनेत्रभिदे नमःOm Bhaganetrabhide Namah
- अव्यक्त – ॐ अव्यक्ताय नमःOm Avyaktaya Namah
- दक्षाध्वरहर- ॐ दक्षाध्वरहराय नमःOm Dakshadhwaraharaya Namah
- हर- ॐ हराय नमःOm Haraya Namah
- पूषदन्तभित्ॐ पूषदन्तभिदे नमःOm Pushadantabhide Namah
- अव्यग्र- ॐ अव्यग्राय नमःOm Avyagraya Namah
- सहस्राक्ष- ॐ सहस्राक्षाय नमःOm Sahasrakshaya Namah
- सहस्रपाद- ॐ सहस्रपदे नमःOm Sahasrapade Namah
- अपवर्गप्रद- ॐ अपवर्गप्रदाय नमःOm Apavargapradaya Namah
- अनन्त- ॐ अनन्ताय नमःOm Anantaya Namah
- तारक- ॐ तारकाय नमःOm Tarakaya Namah
- परमेश्वर- ॐ परमेश्वराय नमः.Om Parameshwaraya Namah
Somvar Vrat Katha related FAQs
सोमवार के व्रत में शाम को क्या खाना चाहिए?
मित्रो सोमवार के व्रत में शाम को फल, दूध, पानी, दही, और व्रत के अनुसार बनी हुई खिचड़ी जैसे सात्विक आहार का सेवन किया जा सकता है। व्रत के दौरान उपवास के नियमों का पालन करते हुए ये आहार आपको शांति और शुभता की भावना देता है।
मित्रो सोमवार के व्रत में अनाज, तेल, नमक, अन्धेरे में बनी चीजें, मांस, मछली, और अल्कोहल जैसी चीजें नहीं खानी चाहिए।
मित्रो सोमवार के व्रत को रखने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, और व्यक्ति को मानसिक शांति, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है।
सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है और इस दिन शिवजी की पूजा, अर्चना, और व्रत रखा जाता है। यह व्रत शिवजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए रखा जाता है।