16 somvar vrat katha: सोलह सोमवार का व्रत दांपत्य जीवन की सुखद और खुशहाली के लिए एवं मनपसंद जीवनसाथी प्राप्ति के लिए किया जाता है। माना जाता है कि श्रावण के महीने से शुरू होने वाले इस व्रत को 16 सोमवारों तक रहने से उसका प्रभाव और भी गहरा होता है। पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख है कि सोलह सोमवार का व्रत सबसे पहले मां पार्वती ने शिव भगवान को पाने के लिए शुरू किया था। उनकी तपस्या और व्रत ने उन्हें भगवान शिव के पति रूप में प्राप्ति करवाई थी। आज हम आपको बताने जा रहे हैं 16 Somvar Vrat Katha और व्रत के लाभ और पूजन विधि के बारे में कृप्या पूरा लेख पढ़े।
सोलह सोमवार व्रत (Solah Somvar Vrat) एक प्रसिद्ध हिन्दू व्रत है जो भगवान शिव को समर्पित होता है। इस व्रत में व्रती व्यक्ति सोमवार (सोमवार के हर सप्ताह) को अपने मनोकामना, आशीर्वाद और मानसिक शांति के लिए भगवान शिव की पूजा करता है। व्रती व्यक्ति एक से सोलह सोमवार तक इस व्रत को करता है।
16 Somvar Vrat Katha कैसे करे? – सोलह सोमवार व्रत की विधि
16 सोमवार व्रत करने के लिए निम्नलिखित तरीके का पालन किया जाता है: सोमवार व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। साफ-सुथरे कपड़े पहनकर महादेव के सामने 16 सोमवार व्रत का संकल्प लें। इस संकल्प के समय शिवजी के इस मंत्र का जाप करें:
“ऊं शिवशंकरमीशानं द्वादशार्द्धं त्रिलोचनम्। उमासहितं देवं शिवं आवाहयाम्यहम्॥”
शाम को, स्त्रियां सोलह श्रृंगार करके शाम में शिवजी का अभिषेक करें। घर या मंदिर में शिवलिंग पर गंगाजल से जलाभिषेक करें। फिर पंचामृत से शिव को चढ़ाएं। सफेद चंदन से शिवलिंग पर दाएं हाथ की तीन अंगुलियों से त्रिपुण बनाएं और अन्य पूजा सामग्री समर्पित करें। देवी पार्वती को सोलह श्रृंगार सामग्री चढ़ाएं, धूप-दीप और भोग लगाकर सोमवार व्रत की कथा सुनें। सोलह सोमवार व्रत में आटे, गुड़ और घी से चूर्ण बनाकर भोग लगाएं। इसे तीन हिस्सों में बाँटकर शिवजी को चढ़ाएं। अंत में शिवजी के मंत्रों का जाप, शिव चालीसा का पाठ कर आरती दें। अब प्रसाद का पहला हिस्सा गाय को दें, दूसरा खुद खाएं और तीसरा अन्य लोगों में बाँटें।
- प्रारंभिक निर्धारण: 16 Somvar Vrat को श्रावण मास के पहले सोमवार से शुरू करें। यदि वह नहीं हो सके, तो अन्य सोमवार से भी शुरू किया जा सकता है।
- उपासना और पूजा: हर सोमवार शिवलिंग को गंगाजल और धातुरा से स्नान कराएं और उसे बेल पत्र, चन्दन, और अर्क से पूजें।
- व्रत कथा का पाठ: प्रति सोमवार व्रत कथा को पढ़ें और इसका महत्व समझें।
- नियमित उपवास: सोमवार को नियमित रूप से उपवास रखें।अनाज और नमक से बनी चीजें नहीं खाएं।
- 16 सोमवार व्रत में सात्विक और शाकाहारी आहार का सेवन करना उचित होता है।
- पूजन समाप्ति: व्रत की समाप्ति पर, शिवजी को अर्पण करें और उनकी कृपा और आशीर्वाद की कामना करें।
- पूजा का समय: व्रत के समय में शांति और ध्यान का समय बिताएं, जिससे मानसिक और आध्यात्मिक विकास हो।
16 Somvar Vrat Katha in Hindi
एक बार, भगवान शिव और माता पार्वती ने मृत्युलोक में भ्रमण किया और अमरावती नगरी में पहुंचे। वहां के राजा ने एक शिव मंदिर बनवाया था, जो अत्यंत शानदार और मन को शांति देने वाला था। शिव-पार्वती ने भी उस स्थान पर ठहरने का निर्णय किया। पार्वतीजी ने कहा, हे नाथ “चलो आज इसी स्थान पर चौसर-पांसे खेलें।” खेल शुरू हुआ। शिवजी ने कहा, “मैं ही जीतूंगा।” इसके बाद उनके बीच में बहस शुरू हो गई।
उसी समय पुजारी आकर पूजा करने लगे।पार्वतीजी ने पुजारी से पूछा, “बताइए, इस खेल की जीत किसकी होगी? पुजारी ने कहा, “इस खेल में महादेवजी के समान कोई और नहीं हो सकता, उन्हीं को यह बाजी जीतनी होगी।” लेकिन वाक्यांश उलटा हो गया, और विजय पार्वतीजी की हो गई। इसलिए पार्वतीजी ने पुजारी को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया क्योंकि उन्होंने झूठा बोला था।
पुजारी अब कोढ़ी हो गया था। शिव-पार्वतीजी ने दोनों ही वहाँ से वापस चले गए। थोड़ी देर बाद, अप्सराएं पूजा करने आईं। अप्सराएं पुजारी के कोढ़ी होने का कारण पूछने लगीं। पुजारी ने सभी घटनाएं विस्तार से बता दीं। अप्सराएं बोलीं- “पुजारीजी, आपको 16 Somvar Vrat करना चाहिए, शिवजी आपकी प्रसन्नता से आपके संकट को दूर करेंगे।” पुजारीजी ने अप्सराओं से व्रत की प्रक्रिया पूछी।
अप्सराएं ने व्रत करने और उसे उद्यापन करने की सम्पूर्ण विधि बता दी। पुजारीजी ने श्रद्धाभाव से व्रत शुरू किया और व्रत को समाप्त किया। इस व्रत के प्रभाव से पुजारीजी की बीमारी दूर हो गई। कुछ दिनों बाद, जब शंकर-पार्वतीजी फिर से उस मंदिर में आए, तो पुजारीजी को स्वस्थ देखकर पार्वतीजी ने पूछा- “तुमने मेरे दिए श्राप से मुक्ति पाने के लिए कौन सा उपाय किया?” पुजारीजी ने कहा- “हे माता! अप्सराओं ने मुझे 16 सोमवार का व्रत करने की सलाह दी थी, जिससे मेरी यह तकलीफ दूर हुई है।
पार्वतीजी ने भी 16 Somvar Vrat Katha किया
पार्वतीजी ने भी 16 सोमवार का व्रत किया, जिससे उनसे रूठे हुए कार्तिकेयजी भी अपनी मां से प्रसन्न होकर आज्ञाकारी हुए। कार्तिकेयजी ने पूछा- “हे माता! मेरा मन आपके चरणों में क्यों लगा रहता है?” पार्वतीजी ने कार्तिकेय को 16 सोमवार के व्रत का माहात्म्य और विधि बताई, जिससे कार्तिकेयजी ने भी व्रत किया और उनका खोया हुआ मित्र प्राप्त हुआ। अब वह मित्र भी इस व्रत को अपने विवाह की इच्छा से कर रहा था।
इसके परिणामस्वरूप, वह विदेश गया। वहां एक राजा की कन्या का स्वयंवर हो रहा था। राजा ने घोषणा की थी कि जिस व्यक्ति को राजकुमारी वरमाला पहनाएगी, उसी से विवाह करेगा। वह ब्राह्मण मित्र भी स्वयंवर देखने की इच्छा से वहां पहुंच गया। हाथीनी ने उस ब्राह्मण मित्र को ही माला पहनाई, जिससे राजा ने उसके साथ राजकुमारी का विवाह कर दिया। बाद में वे दोनों बहुत खुश रहने लगे।
एक दिन राजकन्या ने पूछा- “हे नाथ! आपने कौन-सा पुण्य किया जिससे हथिनी ने आपके गले में वरमाला पहनाई?” ब्राह्मण पति ने कहा- “मैंने कार्तिकेयजी द्वारा बताए अनुसार 16 सोमवार का व्रत पूर्ण विधि-विधान सहित श्रद्धा-भक्ति से किया जिससे मुझे तुम्हारे जैसी सौभाग्यशाली पत्नी मिली। अब तो राजकन्या ने भी सत्य-पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत किया और सर्वगुण संपन्न पुत्र प्राप्त किया। बड़े होकर पुत्र ने भी राज्य प्राप्ति की कामना से 16 सोमवार का व्रत किया।
राजा के देवलोक होने पर इसी ब्राह्मण कुमार को राजगद्दी मिली, फिर भी वह इस व्रत को करता रहा। एक दिन उसने अपनी पत्नी से पूजा सामग्री शिवालय ले चलने को कहा, परंतु उसने पूजा सामग्री अपनी दासियों द्वारा भिजवा दी। जब राजा ने पूजन समाप्त किया, तो आकाशवाणी हुई कि हे राजा, तुम इस पत्नी को त्याग दो नहीं तो राजपाट से हाथ धोना पड़ेगा।
सोलह सोमवार व्रत कथा
प्रभु की आज्ञा मानकर उसने अपनी पत्नी को महल से निकाल दिया। तब वह अपने भाग्य को कोसती हुई एक बुढ़िया के पास गई और अपना दुखड़ा सुनाया तथा बुढ़िया को बताया- “मैं पूजन सामग्री राजा के कहे अनुसार शिवालय में नहीं ले गई और राजा ने मुझे निकाल दिया।” बुढ़िया ने कहा- “तुझे मेरा काम करना पड़ेगा।” उसने स्वीकार कर लिया, तब बुढ़िया ने सूत की गठरी उसके सिर पर रखी और बाजार भेज दिया। रास्ते में आंधी आई तो सिर पर रखी गठरी उड़ गई।
बुढ़िया ने डांटकर उसे भगा दिया। अब रानी बुढ़िया के यहां से चलते-चलते एक आश्रम में पहुंची। गुसांईजी उसे देखते ही समझ गए कि यह उच्च घराने की अबला विपत्ति की मारी है। वे उसे धैर्य बंधाते हुए बोले- “बेटी, तू मेरे आश्रम में रह, किसी प्रकार की चिंता मत कर।” रानी आश्रम में रहने लगी, परंतु जिस वस्तु को वह हाथ लगाती, वह वस्तु खराब हो जाती।
यह देखकर गुसांईजी ने पूछा- “बेटी, किस देव के अपराध से ऐसा होता है?” रानी ने बताया कि “मैंने अपने पति की आज्ञा का उल्लंघन किया और शिवालय में पूजन के लिए नहीं गई, इससे मुझे घोर कष्ट उठाने पड़ रहे हैं।” गुसांईजी ने शिवजी से उसके कुशलक्षेम के लिए प्रार्थना की और कहा- “बेटी, तुम 16 सोमवार का व्रत विधि के अनुसार करो, तब रानी ने विधिपूर्वक व्रत पूर्ण किया।
व्रत के प्रभाव से राजा को रानी की याद आई और दूतों को उसकी खोज में भेजा। आश्रम में रानी को देख दूतों ने राजा को बताया। तब राजा ने वहां जाकर गुसांईजी से कहा- “महाराज! यह मेरी पत्नी है। मैंने इसका परित्याग कर दिया था। कृपया इसे मेरे साथ जाने की आज्ञा दें।” शिवजी की कृपा से प्रतिवर्ष 16 सोमवार का व्रत करते हुए वे आनंद से रहने लगे और अंत में शिवलोक को प्राप्त हुए।
Solah Somvar Vrat Katha in Hindi: कथा 2
प्राचीन समय में एक नगर में एक धनवान साहूकार निवास करता था, उसके घर में कोई कमी नहीं थी। लेकिन उसका कोई पुत्र नहीं था, जिसके कारण वह बहुत दुःखी था। रोजाना उसे यही चिंता सताती रहती थी। उसने पुत्र प्राप्ति के लिए हर सोमवार को भगवान शिव का व्रत रखा और शाम को शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने दीपक जलाया। उस भक्ति भाव को देखकर देवी माँ पार्वती ने शिव जी से कहा कि यह साहूकार आपका बहुत बड़ा भक्त है और सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा के साथ करता है। इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।
शिवजी ने कहा- “हे पार्वती! यह संसार कर्मक्षेत्र है। जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है। उसी तरह इस संसार में व्यक्ति जैसा कर्म करता हैं वैसा ही फल भोगता है।” पार्वती जी ने अत्यन्त आग्रह से कहा- प्रभु! जब यह आपका इतना बड़ा भक्त है और इसको अगर किसी भी प्रकार का दुःख है तो उसे अवश्य दूर करना चाहिए क्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु होते हैं और उनके दुःखों को हमेशा दूर करते हैं।
यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य आपकी सेवा व व्रत क्यों करेंगे? पार्वती जी के ऐसे आग्रह पर शिव जी बोले- “हे पार्वती! इसके कोई पुत्र नहीं है, इसी चिन्ता में यह अत्यंत दुःखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वर दे सकता हूं, लेकिन वह पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा। इसके पश्चात् वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। इससे अधिक तो मैं भी कुछ और इसके लिए नहीं कर सकता।
” साहूकार यह बातें सुन रहा था। उसको न तो प्रसन्नता हुई और न ही कुछ दुःख हुआ। वह पहले की तरह ही शिव जी महाराज का व्रत और पूजन करता रहा। कुछ समय बीत जाने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसे अति सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई। साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई, परन्तु साहूकार ने उसकी केवल बारह वर्ष की आयु जानकर अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और न ही किसी को यह भेद बताया।
जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया
जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो उसकी माता ने उसके पिता से विवाह आदि के लिए आग्रह किया तो साहूकार ने कहना शुरू किया कि अभी मैं इसका विवाह नहीं करवा सकता। अपने पुत्र को काशी में पढ़ाई के लिए भेजूंगा। फिर साहूकार ने उस बालक के मामा को बुलाया और उसे बहुत सारा धन दिया, कहते हुए कि तुम इस बालक को काशी जाकर पढ़ाई के लिए ले जाओ और जहां-जहां जाओ यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराओ। फिर वे दोनों मामा-भानजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए काशी जाने लगे। रास्ते में एक शहर से गुजरना पड़ा, जहां एक राजा की कन्या का विवाह हो रहा था और दूसरे राजा का लड़का, जो विवाह में बारात लेकर आया था, वह एक आंख से अंधा था।
उसके पिता को इस बात से बड़ी चिंता हो रही थी कि कहीं वर को देख कन्या के माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन न पैदा कर दें। इस कारण जब उसने अति सुन्दर सेठ के बेटे को देखा, तो मन में विचार किया कि क्यों न दरवाजे के समय इस बच्चे से वर का काम चलाया जाए। ऐसा विचार कर वर के पिता ने उस बच्चे और उसके मामा से बात की, जिन्होंने सहमति दी।
फिर उस बच्चे को वर के वस्त्र पहनाकर और घोड़ी पर चढ़ाकर दरवाजे पर ले गए, और सभी कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गए। फिर वर के पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के के द्वारा करा लिया जाय तो क्या बुराई है? ऐसा विचार कर उन्होंने लड़के और उसके मामा से कहा – “यदि आप फेरों और कन्यादान के काम को भी करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी और मैं इसके बदले में आपको बहुत सारा धन दूंगा।” उन्होंने स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से सम्पन्न हो गया।
16 Somvar Vrat
परंतु जब लड़का जाने लगा, तो उसने राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिख दिया कि “तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है, परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आंख से काना है और मैं काशी जी में पढ़ने जा रहा हूँ।” लड़के के जाने के बाद, राजकुमारी ने जब अपनी चुन्नी पर ऐसा लिखा देखा, तो उसने राजकुमार के साथ नहीं जाने का फैसला किया और कहा कि “यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है। वह तो काशी जी पढ़ने गया है।” राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गयी।
उधर सेठ का लड़का और मामा काशी जी पहुंच गए थे। वहां पहुंचकर लड़के ने पढ़ाई शुरू कर दी। जब लड़के की आयु बारह साल की हो गई तो उस दिन उसने यज्ञ रचा रखा था। लड़के ने अपने मामा से कहा, “मामाजी, आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही।” मामा ने कहा, “अन्दर जाकर सो जाओ और आराम करो।” लड़का अन्दर जाकर सो गया और थोड़ी देर बाद उसकी मृत्यु हो गई।
जब उसके मामा ने आकर देखा, तो वह मुर्दा पड़ा हुआ था। उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोना-पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा जो सही नहीं होगा। इसलिए उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त किया और ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना शुरू कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव-पार्वतीजी उधर से जा रहे थे।
प्रभु शिव कि कृपा हुई
जब उन्होंने जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी, तो पार्वती जी शिव जी से कहने लगीं, “प्रभु! कोई दुखी रो रहा है, कृपया इसके कष्ट को दूर कीजिए।” जब शिव-पार्वती ने पास जाकर देखा, तो वहां एक लड़का मुर्दा पड़ा हुआ था। पार्वती जी बोलीं, “महाराज, यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से पैदा हुआ था। अत: ‘हे प्रभु! इस बालक को और आयु दो, नहीं तो इसके माता-पिता तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।’” पार्वती जी के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन का वरदान दे दिया और भगवान शिवजी की कृपा से लड़का फिर जीवित हो गया। इसके बाद शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत की ओर चले गए।
उसके बाद, वह लड़का और उसका मामा वैसे ही यज्ञ करते रहे और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए अपने घर की ओर लौट चले। रास्ते में वे उसी शहर में पहुंचे, जहां उनका विवाह हुआ था। जैसे ही वहां पहुंचे, उन्होंने यज्ञ की प्रारंभिकता की, तब उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और उसे अपने महल में ले जाकर उसकी बड़ी सम्मान की साथ ही बहुत से दास-दासियों सहित उसकी पत्नी और जमाई को विदा दिया।
जब वे अपने शहर के निकट आए, तो उसका मामा ने कहा कि पहले मैं तुम्हारे घर जाकर खबर कर आता हूं। जब उस लड़के का मामा घर पहुंचा, तो उसके माता-पिता घर की छत पर बैठे थे और उन्होंने संकेत दिया था कि अगर उनका पुत्र सुरक्षित लौट आया, तो वे खुशी-खुशी नीचे उतरेंगे, लेकिन अगर नहीं तो छत से कूदकर अपने प्राण त्याग देंगे।
उस समय, उस लड़के के मामा ने आकर सूचित किया कि आपका पुत्र वापस आ गया है। परंतु इस सूचना पर विश्वास नहीं हुआ। उसके मामा ने शपथ पूर्वक घोषणा की कि आपका पुत्र अपनी पत्नी के साथ बहुत सारा धन लेकर लौट आया है। उस समय सेठ ने उसका वार्ता अत्यंत आनंदपूर्वक स्वीकार किया और उन दोनों ने बहुत खुशी से समय बिताना शुरू किया। विश्वास किया जाता है कि जो व्यक्ति सोमवार के व्रत को मानता है या इस कथा को सुनता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
16 Somvar Vrat Katha Aarti
।। ॐ जय शिव ओंकारा… प्रभु जय शिव ओंकारा।।
।। ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा।।
।।ॐ जय शिव।।
।। एकानन चतुरानन पंचानन राजे।।
।। हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।।
।।ॐ जय शिव।।
।। दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।।
।। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे।।
।।ॐ जय शिव।।
।। अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।।
।। चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी।।
।।ॐ जय शिव।।
।। श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।।
।। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे।।
।।ॐ जय शिव।।
।। कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।।
।। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता।।
।।ॐ जय शिव।।
।। ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।।
।। प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका।।
।।ॐ जय शिव।।
।। काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।।
।। नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी।।
।।ॐ जय शिव।।
।। त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे।।
।। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे।।
।।ॐ जय शिव।।
16 Somvar Vrat Katha related FAQs
मित्रो 16 सोमवार व्रत, 16 अखंड सोमवारों के लिए है, जो भगवान शिव की कृपा और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। इससे विवाहित जीवन, समृद्धि और संपत्ति की प्राप्ति की आशा होती है।
भक्त मानते हैं कि इस व्रत को सत्यनिष्ठा से पालन करने से उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं, विवाहित जीवन में सुख, संपत्ति और समस्याओं को दूर करने में मदद मिलती है।
कुछ लोग जहां पूरे दिन भूखे रहकर सिर्फ शाम के वक्त कुछ हल्का-फुल्के फलाहार का सेवन करते हैं, तो वहीं कुछ लोग अनाज और नॉर्मल खाने की जगह व्रत के दौरान फल, दूध और दूसरी व्रत से जुड़ी चीजें खाते हैं तो वहीं कुछ लोग दिन भर भूखे रहकर रात में सिर्फ एक वक्त खाना खाते हैं औऱ वह भी बिना नमक के।
16 सोमवार व्रत कब से शुरू करना चाहिए 2024?
मित्रो 16 सोमवार व्रत को शुरू करने का सर्वाधिक शुभ समय है सोमवार को, और उसी सोमवार से शुरू करने से 16 सोमवार व्रत पूर्ण हो जाता है। यह व्रत किसी भी सोमवार से शुरू किया जा सकता है, परन्तु सामान्यतः लोग श्रावण मास के पहले सोमवार से इसे आरंभ करते हैं।
16 Somvar Vrat में क्या खाना चाहिए?