Somvar Vrat Katha Aarti 2024: सोमवार व्रत कथा आरती

somvar vrat katha aarti: सोमवार व्रत का महत्व भगवान शंकर को समर्पित होता है। सोमवार के दिन भक्त भोलेनाथ को खुश करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत रखते हैं ताकि शिव भगवान की कृपा प्राप्त हो सके। बाबा भोलेनाथ के आशीर्वाद के लिए यदि आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूरा करें।

सोमवार के व्रत को मानते हैं कि इसे करने से भगवान शिव अपने भक्तो की इच्छाएँ जल्दी पूरी करते हैं। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। यही कारण है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने का महत्व और भी बढ़ जाता है। सोमवार को व्रत रखने वाले लोगों को सोमवार की व्रत कथा पढ़ना बहुत जरूरी है। क्योंकि इसके बिना व्रत पूरा नहीं माना जाता है। सोमवार व्रत की कथा जानें।

सोमवार व्रत कथा विधि

  • सबसे पहले, सोमवार को शिवलिंग पर जल अर्पित करें। यदि शिवलिंग नहीं हो, तो घर में कोई छोटी पूजा स्थली बनाएं और वहां जल अर्पित करें।
  • फिर शिवजी को बेल पत्र, धातुरा, चन्दन, और गंगाजल से पूजें। मन में भगवान शिव की भक्ति और श्रद्धा से आराधना करें।
  • व्रत कथा को पढ़ें। यह कथा शिवलिंग के आगे बैठकर, मंदिर में, या गृह मंदिर में पढ़ी जा सकती है।
  • कथा का पाठ पूरा होने के बाद, भगवान शिव को अर्पण करें और उनकी कृपा का आशीर्वाद मांगें।
  • व्रत के दिन विशेष रूप से सात्विक भोजन करें और अन्य उपवास के नियमों का भी पालन करें।
  • सोमवार के व्रत को समाप्त करने के बाद, शिवजी की आराधना को समाप्त करें और उनकी कृपा की कामना करें।

पूजा को ध्यान से और भक्ति भाव से करने से सोमवार के व्रत कथा का अच्छा अनुभव होता है।

Somvar Vrat Katha: सोमवार व्रत कथा

एक बार की बात है, एक नगर में एक साहूकार निवास करता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी, परन्तु उसे कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण वह बहुत दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा से शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा किया करता था। उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।

माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय के बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराना। जहां भी यज्ञ कराओ वहां ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना।

दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची।साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात ठीक नहीं लगी।

कथा पूरा पढ़े

उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं। जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया, जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ।

शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें। जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे भगवान जी ने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है। लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।

माता पार्वती के प्रार्थना से भगवान शिव ने उस लड़के को जीवनदान दिया। भगवान की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा पूरी करने के बाद, वह लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर की ओर निकला। उन दोनों ने उसी नगर में जहां उसका विवाह हुआ था यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और उसकी खातिरदारी किया, और अपनी पुत्री और दामाद को विदा किया।

उसी समय साहूकार और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने संकल्प बनाया था कि अगर उन्हें बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे, परंतु बेटे के जीवनकल्याण के समाचार सुनकर वे अत्यन्त खुश हुए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा – “हे व्यापारी, मैंने तुम्हारे सोमवार के व्रत और कथा सुनने का प्रसन्नता प्राप्त कर तुम्हारे पुत्र को दीर्घायु प्रदान किया है। जैसे ही कोई सोमवार व्रत करता है और कथा सुनता या पढ़ता है, उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

Somvar Vrat Katha Aarti: सोमवार व्रत आरती कथा

।। ॐ जय शिव ओंकारा… प्रभु जय शिव ओंकारा।।

।। ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा।।

     ।।ॐ जय शिव।।

।। एकानन चतुरानन पंचानन राजे।।

।। हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।।

    ।।ॐ जय शिव।।

।। दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।।

।। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे।।

    ।।ॐ जय शिव।।

।। अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।।

।। चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी।।

   ।।ॐ जय शिव।।

।। श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।।

।। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे।।

   ।।ॐ जय शिव।।

।। कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।।

।। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता।।

   ।।ॐ जय शिव।।

।। ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।।

।। प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका।।

    ।।ॐ जय शिव।।

।। काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।।

।। नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी।।

    ।।ॐ जय शिव।।

।। त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे।।

।। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे।।

    ।।ॐ जय शिव।।

Somvar Vrat Katha Aarti

Somvar Vrat Katha Aarti related FAQs

सोमवार व्रत कब और कैसे किया जाता है?

सोमवार के सोमवार को भगवान शिव के व्रत के रूप में मनाया जाता है। इसमें भक्तगण शिवलिंग की पूजा करते हैं और विशेष आहार चढ़ाते हैं।

सोमवार व्रत कथा क्या है?

सोमवार व्रत कथा भगवान शिव के व्रत के दौरान की जाने वाली कहानी है, जिसमें भक्त शिव की पूजा और व्रत के महत्व को बताया गया है।

व्रत में आरती क्यों और कैसे की जाती है?

व्रत में आरती इसलिए की जाती है क्योंकि यह भगवान शिव को समर्पित होती है और भक्त इसके माध्यम से देवी-देवता से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। आरती के द्वारा भक्त भगवान की पूजा करते हैं और उनकी कृपा की प्रार्थना करते हैं।

सोमवार व्रत की आरती कौन-कौन सी होती है?

सोमवार व्रत की प्रमुख आरतियाँ महामृत्युंजय मंत्र, शिव ताण्डव स्तोत्र और रुद्राष्टकम होती हैं, जो भगवान शिव की महिमा को गाती हैं और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

Leave a Comment